इन्तहा
इन्तहा
तारीफ़ हुस्न की
होती है
हसीना की नहीं
चाहत प्यार की
होती है
नफरत की नहीं
दिल मे प्यार
छुपा भी दो तो
हम समझ लेंगे
क्यूँकि इन्तहा दीदार की
होती है
यार की नहीं।
तारीफ़ हुस्न की
होती है
हसीना की नहीं
चाहत प्यार की
होती है
नफरत की नहीं
दिल मे प्यार
छुपा भी दो तो
हम समझ लेंगे
क्यूँकि इन्तहा दीदार की
होती है
यार की नहीं।