इंसाफ
इंसाफ
हर औरत क्यों आज इंसाफ की वेदी पर अकेली खड़ी है ?
इस पुरुष प्रधान समाज से औरत क्यों हर बार खुद ही लड़ी है ?
दामिनी, निर्भया के तप्त हृदय से आज चित्कार फिर उठी है।
माना गांधारी बना कानून पर जनता ने क्यों पुकार नहीं सुनी है ?
क्यों बलात्कार, एसिड अटैक के केसो की फाइले अटकी पड़ी है ?
क्यों समाज में दरिंदों को खुला घूमने की छूट मिलती जा रही है ?
लटका दो फाँसी पर उन दरिंदों को जिनके कारण ये
नाबालिक अबोध बालाएं आज जिंदा लाश बन गई हैं।
दो उन पैशाचिक वृत्ति मानवों को सजा-ए-मौत जिनके कारण
आई दुर्भाग्यपूर्ण, अवांछित, अमानवीय दुखद ये घड़ी है।
क्यूँ माँगना पड़ रहा इंसानों को इंसानों से इंसाफ है ?
जब इंसान ही इंसानियत के लिए बना अभिशाप है।
जब तलक अत्याचार ये क्रूर व्यवहार बंद नहीं होंगे।
तब तलक नारी विमर्श के मुद्दे भी खत्म नहीं होंगे।
आज नारी- पुरुष समानता के नाम पर लिखे कोरे आदेश है।
हर घर आज भी नारी के लिए केवल बना हुआ परदेस है।