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इंसानियत

इंसानियत

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इन्सान से कर नफरत नर मन

पत्थर का पूजा करते हो

भगवान तुम्हारे भीतर में

मठ मंदिर ढूंढा करते हो।

       

है ईश्वर के संतान सभी

है जाति धर्म में बँटा अभी

कर हत्या इक नर दूजे का

प्रदर्शन करे मिथ्या धन का

दिनों का शोणित पी - पीकर

नर दान - धरम क्या करते हो।


सृष्टि का तुम हो चरम रूप 

कोई रंक बने कोई बने भूप

धरती को भी तू बांटे मनुज

चीर माँ वक्षों को बना दनुज

निर्दोष निरीह है तड़प रहा

तुम जश्न मनाया करते हो।

 

तू निज दायित्व को समझ ज़रा

नैतिक कर्तव्य क्या है तेरा

इन्सान को ईश्वर अंश समझ

सब जीवों को इक वंश समझ

भगवान का प्यारा बन मानव

शैतान बना क्यों करते हो।।

   


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