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शरद पुनो

शरद पुनो

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निख निर्मल नील नभ में, चमक रही है चाँदनी।

महारजनी शरद पुनो, सुधा रश्मि प्रवाहनी।


न ग्रीष्म आतप उष्णता, न पंक वृष्टि अभवयता।

न शीतलहरी - सी ठिठुरता, न तिमिरता अरम्यतो।


धवलमय राका मनोहर, शुभ सुमंगल दामिनी।

शुभद, सुखद, सुरम्य,चारुत, नवजीवन सरसाती मारुत।

वधु स्वरूपा दामिनी प्रिय, मनभावनी सी कामिनी हिय।

मधुसम मधुमय मधुर निशापति, मदमाता अन्मादि‍नी।


शरद पूनम की प्रभा में, मंगलमयी कोजागरा में।

हास्यमय प्रमुरित मनुज, आनंद मग्न है जर-चेतना।

मूर्त दृष्टिगत कला कृति, धवल रजनी रागनी।

     


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