इंसान मैं
इंसान मैं
खाल से बंधी लिबास में
हाड़ का बना कहता है,
कि इंसान मैं!
क्या और नहीं तुझ से
इस संसार में
एक जानवर भी है उपस्थित
उसी लिबास में!
घमंड हुआ है तुझे
चार लफ्ज़ कह के
बोलता तो वो भी है
मगर अलग अंदाज़ में!
खाल से बंधी लिबास में
हाड़ का बना कहता है,
कि इंसान मैं!
देगी सबक़ तुझे कुदरत
तेरी करतूतों पे
कर के तबाह उसे
फिर भी कहता है
कि इंसान मैं!
सब कुछ दिया तुझे उस ने
मगर क्या दिया तुने बदले में
सब पड़ा है दबा-कुचला
अफसोस के मलबे में
फिर भी कहता है
कि इंसान मैं!
खाल से बंधी लिबास में
हाड़ का बना कहता है,
कि इंसान मैं!