इंक़लाब लिख आया हूँ मैं
इंक़लाब लिख आया हूँ मैं


मर के भी यारो आज
जीना सीख आया हूँ मैं
इश्क लिखने बैठता सरहद किनारे
और इंक़लाब लिख आया आया हूँ।
है वतन की मिट्ठी से
महोब्बत मुझे कुछ इस कदर
कि सरहद की हर चोटी पर
मैं नाम वतन का लिख आया हूँ।
मर के भी यारो आज
जीना सीख आया हूँ मैं
इश्क लिखने बैठता सरहद किनारे
और इंक़लाब लिख आया आया हूँ।
है वतन की मिट्ठी से
महोब्बत मुझे कुछ इस कदर
कि सरहद की हर चोटी पर
मैं नाम वतन का लिख आया हूँ।