इम्तिहान है जिंदगी
इम्तिहान है जिंदगी
जब गर्भ में बच्चा आता है,इम्तिहान शुरू हो जाता है,
जब पारम्परिक रिवाजों के दौर से वो गुजरती है।।
मां का जिस्म खुद का नहीं रहता है,
वो भी इम्तिहान के दौर से गुजरती है।।
जिंदगी की उलफते, नफरतों में बदल जाती है,
जब एक मां बेटी पैदा होने के दौर से गुजरती है
एक औरत, औरत को देखती है नफरत भरी निगाहों से,
समाज में ऐसा करके नफरतों के बीज क्यों बोती है।।
जब वो बडी होती है हर कोई रास्ते में व्यवधान बन खडा हो जाता है,
जिंदगी में जज्बातों के साथ फिर इक इम्तिहान खडा हो जाता है।।
जीवन में हर मुसीबत से जुझते हुए वो सफलता की सीढ़ी चढ़ जाती हैं,
यहां एक मां जीवन संघर्ष के इम्तिहान पर विजय पा जाती है।।
जो देखते थे एक मां,बहन,बेटी को नफरतों की निगाहों से,
आज सफल होने पर सबको दुर्गा देवी स्वरुपा नजर आती है।।
यहां विजयलक्ष्मी कलम हाथ में लिए सोचती है,
कयो?एक औरत,एक औरत को इम्तिहान के दौर से गुजारती है।।
आओ हम सब मिलकर समाज में फैली इन कुरीतियों को मिटाएं,
सकारात्मक सोच रखते हुए एक सभ्य समाज बनाएं।।