ईश्वर की तलाश
ईश्वर की तलाश
ईश्वर मैं तेरी बाहर तलाश करता हूं
मैं भी क्या फिझुल की बात करता हूं
तू बसा है सबके ही घट घट मैं स्वामी,
मैं भी क्या तुझे बाहर ढूढा करता हूं
जैसा की तिल मैं तेल है,
वैसा ही तेरा मुझमें मेल है,
मैं भी क्या बिना जले दीपक बनता हूं
मैं भी क्या फिझुल की बात करता हूं
ख़ुदा तेरा दरिया तो ख़ूब भरा पड़ा है,
मे भी क्या रोकर प्यास पूरी करता हूं
तू मिलेगा एकदिन मुझे जरूर मिलेगा,
मैं गर तुझे साखी समझ याद करता हूं
ईश्वर मैं तेरी बाहर तलाश करता हूं
मैं भी क्या फिजूल की बात करता हूं
मेहंदी सदैव रचने के बाद ही रंग लाती है
तेरी याद सबसे नाता टूटने पर ही आती है
मैं भी क्या ज़माने से मदद मांगा करता हूं
एकबार आईने को पहचान तो सही,
आईने मैं अक्स को निहार तो सही
मैं भी क्या शीशे के बाहर देखा करता हूं
मैं भी क्या फिझुल की बात करता हूं
अपनी खुदी की तू पहचान कर ले
आसामां मैं साखी तू निशान कर दे,
मैं भी क्या मन को बाहर छोड़कर,
मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारे मैं भटका करता हूं
अपना ख्याल तू ऊंचा कर,
रब से तू सीधे बात कियाकर
मैं भी क्या पुजारी, मौलवि से बात करता हूं
मैं भी क्या फिजूल की बात करता हूं
तलाश कर उसे तू अपने भीतर
हटा ले सारे ज़माने से तू नज़र
फिर देख वो भीतर ही नज़र आयेगा
मैं भी क्या कस्तूरी मृग बन भटका करता हूं
ईश्वर मैं तेरी बाहर तलाश करता हूं
मैं भी क्या फिजूल की बात करता हूं।