हवा का कहना है
हवा का कहना है
शीतल मंद हवा बहती है
यह संदेश सदा कहती है
गरल नहीं मुझमें तुम घोलो
ज्ञान चक्षु अब अपने खोलो
जब जब साँसें घुटती तेरी
तब तब छाती फटती मेरी
नहीं दोष इसमें कुछ मेरा
ये सब करनी का फल तेरा
प्राणदायिनी हूँ में हर पल
स्वयं बिगाड़े तू अपना कल
पेड़ काटकर नगर बसाए
फिर कैसे तू मुझको पाए
आँगन में इक पेड़ लगा लो
जीवन अपना सुखी बना लो
दूषित करना मुझको छोड़ो
सुख से नाता अपना जोड़ो।