हूँ उदास
हूँ उदास
हूँ उदास शायद गलती मेरी ही थी !
आज जब- जब उस टूटते तारे को देखती हूँ
मेरे मन के विचार प्रश्न बन उठते है
की क्या उसे भी किसी ने अपना कह कर बेगाना सा कर दिया
जो वो यूँही अकेला रोता - रोता टूट ही गया
मौसम बदलते है दिन बदलते है
वक़्त बदलता है परिस्थितयाँ भी बदलती है
लेकिन मैं अनजान थी के वो भी बदल सा जायेगा
यूं निराश काले बदल छाए है इस
हँसते नीले आकाश पर की
मीलों तक बंजर है ज़मीन
संगीत की मिठास आँसुओं की पुकार बन गयी है
पक्षियों की चहक हूक सी हो गयी है
उस झील की गहराईयों में मैं डूबती जा रही हूँ
चारों ओर से तन्हाइयों में झूलती जा रही हूँ
हर तरफ वातावरण उदासमय हो गया है
हूँ उदास ! हूँ बेचैन ! हूँ खामोश !
तुम कहाँ हो एक पुकार तो दो
सोचती हूँ यह सब तक़दीर में था या
फिर मेरा अनदेखा क
रने का हुनर था
उठ गया विश्वास, खो गयी आस
कहाँ जाऊँ ? किसे बताऊँ? दिल में है जो बात
दिल में चल रही कश्मकश
वर्षों से संजोयी ख़ुशी भरी यादें
नेत्र से बहती जा रही है
अक्सर बीते लम्हों को याद कर
एक प्रश्न मन में उठता है
प्यासे - पानी को पा प्रसन्न होते है
वैसी प्रसन्ता मुझे न जाने कब प्राप्त होगी
होगी भी यह बस इंतज़ार आ घूट भरते भरते
यह दम निकल जाएंगे ?
बीते लम्हों को याद कर
क्या कहूँ क्या प्राप्त होता है,
इस संसार को छोड़ कहीं चली जाऊँ
तेरी यादों से फासला बना लूँ
तुझसे मुँह फेर कर खुश रहना सीख लूँ
ऐसा महसूस होता है
अपनी आदत डाल कर तुम कहीं खो गए
तुम्हे ढूंढने जो निकली सफर पर
मैं खुद को खोती सी चली गयी
हूँ उदास ! हूँ बेचैन ! हूँ खामोश !
तुम कहाँ हो एक पुकार तो दो