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Ravneet Dhaliwal

Romance

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Ravneet Dhaliwal

Romance

जी चाहता है

जी चाहता है

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इक लम्बा अरसा गुज़र गया, तू मुझे शायद सच में भूल गया

दिल कहता है तू आज भी मेरी मासूमियत का कायल होगा

शायद तूझे आज भी मेरी आवाज़ की तलब होगी,


आज भी मेरी आँखों में उतरी खामोशियों का

गुनेहगार तू खुद को मानता होगा

रूठ जाऊँ जो आज मैं तुझसे,

दिल कहता है तू इस बार मुझे रुस्वा नहीं कर पायेगा



आज तू मुझे मनाए जी चाहता है

तू मुझे अपनी आगोश में छुपा कर

मेरी ज़िद को यह कह कर ताल दे बची नहीं है ,

फिर ले चले मुझे उस झील किनारे

जहाँ हमारी पहली मुलाक़ात हुई थी



और जहाँ आखरी बार

तूझे मैंने तेरा हाथ थाम कर कहा था - मर जाउंगी तेरे बग़ैर

और तूने कहा - मुझे माफ़ कर देना हो सके तो,

मैं कभी तेरे काबिल ही न था !

बड़ा यकीन था मुझे अपनी मोहब्बत पर ,

दिल के साथ वो यकीन भी चूर चूर हो गया



जानती हूँ दूरियों के राह पर बहुत दूर चल आए हैं

पर आज वापस उन्ही राहों पर चलने को जी कर रहा है

काश बयान कर सकती तूझे हाल ए दिल

पर एक सोच के तू तो मसरूफ होगा

अपनी महबूबा की ज़ुल्फों को सवारने में

फिर मुझे तुझसे दूर कर जाती है



मालूम है मुझे तूझे मेरी गमगीन आँखें मेरे आखिरी अल्फ़ाज़

आँखों में देख कर बोलो के यह सच है तुम्हें इश्क़ है उससे -

रोक देती होगी उसके करीब जाने से

मैं सब भूल कर फिर से तूझे

अपनी ज़िन्दगी में शरीक करना चाहती हूँ


थक गयी हूँ झूठी हँसी हँसते हँसते

अब तेरे संग मुस्कुराना चाहती हूँ

फिर से तेरे लिए रुस्वाई के नहीं

तेरे प्यार के नग्में लिखना चाहती हूँ


इंतज़ार तेरा कहाँ करती हूँ

यह तो मालूम होगा न तुम्हें

जी रही हूँ बस तेरे इंतज़ार में उसी झील किनारे


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