हत्यारे
हत्यारे
आधुनिक युग
कलियुग भी कह दें चाहे
जब बात जीवन की आती है
घर से बाहर जिंदगी असुरक्षित हो जाती है।
हर मोड़ पर खड़ा है हत्यारा
कोई नया वेश धारण किए हुृए
किस रूप में सामने आ जाए पता नहीं ।
कहीं किसी वृद्ध की तो कहीं युवा की
कहीं नवविवाहिता की तो कहीं युवती की ,
कहीं नाबालिग लड़कियाँ
तो कहीं मासूम बच्चों की
हत्याएँ अनगिनत
कारण कुछ भी हो
पर अखबार के पृष्ठ भरें हैं इन हत्याओं से
मोह ,माया,लोभ,स्वार्थ,भूख
लिस्ट बड़ी लम्बी है
हत्यारे तो छोटी सी बात पर
भी काम तमाम कर जाते हैं।
समझ नहीं आता
कैसे इंसान में हैवान पैदा होता है
ज़मीर मर जाता है
किसी बेवा की इज्ज़त लूटते
हाथ नहीं काँपते
किसी मासूम का गला दबाते
आत्मा नहीं धिक्कारती
जायदाद के लिए अपनों की हत्या करते
जब तक संसार में ऐसे हत्यारे जिंदा हैं
देश का भविष्य असुरक्षित है।
ऐसी सजा कानून सुनाए कि
सुनकर दौबारा कोई वह गलती न दोहराए।
इस कलियुग में किसी अवतार के
अवतरित होने के इंतजार से पहले
खुद ही इन राक्षसों व रावणों से निबटना होगा।