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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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हर धर्म नजर आया मुझे

हर धर्म नजर आया मुझे

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हर धर्म नजर आया मुझे

बार-बार टटोला

हर तह को खंगाला

अंतिम बूंद तक निचोड़ा 

इंसान तो नहीं

उस पर लगा ग्रहण ही नजर

आया मुझे

हर धर्म नजर आया मुझे


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