होली कविता- अब के बरस
होली कविता- अब के बरस
अब के बरस तुम देख लेना
ऐसी होली खेलूँगी मैं ।
रह ना जाए कोरी चूनर
अतरंगों को छिड़कूँगी मैं ।
टूट चुके दिल के तारों को
नेह गाँठ से जोड़ूँगी मैं ।
घेरे बैठा मौन मन कूप
गहरी चुप्पी तोड़ूँगी मैं ।
अब के बरस...
जितने रंग छुपे हैं भीतर
सबको थोड़ा खोलूँगी मैं।
हाथों से सब की सूरत पर
जी भर के मल डालूँगी मैं।
अब के बरस....
मिट जाए सारी कड़वाहट
इतना मधु रस घोलूँगी मैं।
तन मन भीगे नेह फुहार से
भर पिचकारी छोड़ूँगी मैं।
अब के बरस.....
सखियाँ,बालक,भैया भाभी
फाग गीत पे डोलूँगी मैं।
बुरा न मानो होली है ये
कह कर सबको छेड़ूँगी मैं।
अब के बरस तुम देख लेना
ऐसी होली खेलूँगी मैं।

