आशा
आशा
खोने का जब हो एहसास
पत झरते तरुवर को निहार।
खड़ा दहलीज़ पर आशा की
आएगी फिर बसंत बहार।
साँझ उदास जब आए पास
देख निशा का नित्याचार।
खड़ी विहान की प्रतीक्षा में
सूरज लेगा नवल अवतार।
विफलता का जब हो आभास
देख चींटी का अथक प्रयास।
दृढ़ता के हो रथ पर सवार
गिरती, उठती, माने न हार।
धैर्य छोड़े जब चित्त निवास
देख चातक पाखी की आस।
संयम की पराकाष्ठा बना
केवल स्वाति में सलिलाहार।
जब मन भटके न मिले उजास
देख दीपक लौ का विस्तार।
जड़ता के कोहरे को छाँट
सुपथ पर विद्या का उजियार।