हो वाकिफ फिर भी
हो वाकिफ फिर भी
हो वाकिफ के
आहो में शामिल है दर्द
कितने मासूमों का
हो वाकिफ के
जुल्मों की हो गई है इंतहानं
हो वाकिफ के
है हो रहाँ घना अँधेरा..
हो वाकिफ
के काफिरों से
घिरे है हम्
हो वाकिफ के
खाँ रहा है
कोई दुसरे के ही हक का
हो वाकिफ के
बाँट रहे है
हमें फिर ...
हो वाकिफ
के सियासत
के है तिर
हो वाकिफ फिर भी
क्यों अब तक
छिडी नहीं क्रांती
क्यों कर हो गई
है कलम चूँप
कलम क्यों की
वफाँ बदल गई
क्यों सच की राह
मूँड गई
हो वाकिफ फिर भी
हो वाकिफ फिर भी
आवाज दबी रही..
आवाज दबी रही..