हँसी
हँसी
रब ने बनाया नन्हों को
हँसी भी खूब दी उनको
संभाल के रखना इनको
बारी बारी निकलना है सबको
दोस्ती बनाये हँसी अनजानों से
हँसी पहुँचाए पार मुश्किलों से
जिल्लत से बचाती है इंसानों को
फरिश्ता बनती है आम बन्दों को
हँसी धूप भी छाँव भी
किनारा भी मझधार भी
इस्तेमाल कीजे संभाल के इसे
ये मरहम भी घाव भी
निकम्मों की चापलूसी है हँसी
रेगिस्तान है जल्लादों की हँसी
अक्लमंदों की ढाल है हँसी
बेवकूफ़ लेते हैं संजीदगी से हर हँसी
लफ़्ज़ों में न चुटकुलों में
ईमानदारी की दावत में है हँसी
कमजोरों पे जुल्म हैं हँसी
ताकत है खुद पे खुद की हँसी