हमसफ़र
हमसफ़र
हमसफ़र है तू मेरा ,
हर राज़ है मेरा तुझमें दफ़न
ढूंढ़ना न पड़ा कभी तुझे,
तू मिलता रहा, बस मिलता रहा
ज़िन्दगी के हर मोड़ पे ,
साथ पाया मैंने हमेशा तेरा
निभाया है बखूबी से,
तू ने जो साथ हमारा
खामोश रह के तू,
बस मेरा ही सुनता रहा
अपनी हस्ती को मेरे लिए,
उजागर जो कर डाला
तुझसे क्या छुपाना,
मेरे हर हालात से वाक़िफ़ है तू
वफ़ा की मूरत बन के साथ निभाता रहा है तू
हर दाग को तूने सेहलाया है
चुप के से अपनाया है ,
मेरी हर गुफ्तगू को
दोस्त बन के समझा है
तुझसे न पूछा कभी तेरी मर्ज़ी क्या है
मालिक बन के में अपना करता रहा
साथ निभाया तूने ही जब कोई भी न था
सब के बीच में फिर में तुझे ही ढूंढ़ता रहा
कोरा रह के हमेशा , तूने दी इज़ाज़त मुझको
के में अपनी दिल की ,
लिखता और मिटाता रहूँ
और खामोश तू सुनता रहा