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Moumita Dutta

Abstract

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Moumita Dutta

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इल्तिजा

इल्तिजा

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 दिल थाम के बैठा है तू

किस के आने के इंतज़ार में

उदास है तू I

हज़ार दीवारों को जगह दी है तूने 

पर खुद की घरोंदे का इंतज़ार में 

तू यूँ खामोश रहता है कुछ न कहता है

हर दर्द को तूने खुद में समाया है 

दिल भर आये तो बिखरता है तू 

कईं उम्मीदों को ले डूबता है तू

तेरे गुस्से का एहसास हम सभी को है 

फिर भी, नादानी, नासमझी में दर्द दिए जाते है

तुझे, तेरे वजूद को, बदलने की कोशिश

किये जाते हैं। 

अपनी होने की सबूत छोड़ जाते हैं।

तेरी ऊचाइयों को हम नमन करते हैं।

बेख़याल हम इन्सांनो को, माफ़ करने की,

इल्तिजा करते हैं।


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