हमसफ़र
हमसफ़र
सुनो मेरे हमसफ़र,
मैं जब भी तुम्हारा नाम लिखूंगा उसमें तुम्हारा किरदार जरूर झलकेगा
और तुम्हारे नाम के नीचे फूल पत्ते नहीं बल्कि वे निर्मल लोग बनाऊंगा
जिन्होंने तुम्हें गढ़ने में वक्त दिया हो।
हम जब भी साथ होंगे तब तुम्हें तारीफों के पुलिंदे नहीं सुनाऊंगा,
तुम्हारे जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए
मैं चाय बना कर पिलाऊंगा किसी स्त्री की तरह।
जैसे स्वर्ण को होती है निकष की लालसा और कुंदन को लपट की,
ठीक वैसे मेरी लालसा है तुम्हारा मेरे प्रति मैत्री भाव।
तुम यह भी सोच सकते हो कि हृदय के बीच भूमध्य सागर कौन रखता होगा??
वही ना जिसने देखा होगा एक धरती का स्वप्न ।
सुनो मेरी धरती, तुम्हारे हिस्से का प्रेम सदा बनाये रखेंगे।

