हमारी प्रेम कहानी
हमारी प्रेम कहानी
मेरे घर के पीछे , घर था तुम्हारा
आना-जाना वैसे, चलता ही था
न जाने कब कैसे, दिल आ गया मुझ पे
पर, मेरे नटखट हरकतों से, तू डरता था…
सहेली ने मेरी, जरा सी हिम्मत क्या दिखाई
तू मेसेज-पर-मेसेज करता था
पर, में पागल, तब ये न समझ पाई
ये बावला क्यूँ मुझ पे मरता था?
दबाव में आकर तो, बोल बैठी हाँ
मगर मोहब्बत करना तो, आता न था
फूट गया जब पहली बार सबके सामने भांडा
तब सहेलियों ने, कैसे तैसे बचा लिया था
जी करता था कभी-कभी
क्या खा लूँ में जहर की गोली
सुन -सुनकर ताने लोगों के
पक गयी थी ये चिड़िया भोली
रो रो कर करती खुद का
कितना बुरा हाल
चार चार दिन तक भूखी रहती
न जाने कब थामे गा तू मेरा हाथ
टूट चुकी थी कितनी बार
अपने इस रिश्ते की कड़ी
न जाने तू किस मिट्टी का बना था
जो डाल दी गले में शादी की बेड़ी

