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Syeda Noorjahan

Abstract

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Syeda Noorjahan

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हम

हम

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बेचारगी सी बेचारगी है और हम

कहीं शराफ़त कहीं आवारगी है और हम


घर भी है घर वाले भी हैं

अजनबीयत है शनासाई है और हम


नादान कहता है मासूम से लगते हो

हंस पड़ा कहा मासूम हैं और हम


ख़ामोशी का शोर है दरो दीवार पर

सुकून में चुभन ज़रा सी है और हम


वक्त लगता है वक्त के मरहम को भी

बेसब्र अपनी तड़प ज़रा सी है और हम


कुछ इरादे हैं और हौसले बुलंद भी

हाय यह गीदड़ भभकी और हम


घमासान छिड़ गया है अपने बीच

सामने उसकी बेगानगी है और हम!


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