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PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract Drama Tragedy

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PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract Drama Tragedy

हम क्यों हैं ?

हम क्यों हैं ?

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हम क्यों हैं

और किस लिए जी रहे हैं,

यह अंधेरा 

सिर्फ रात का नहीं

हम सदियों से इसे जी रहे हैं।

निरर्थक ही मन लिए

गली-गली से गुजर रहे हैं।

रिश्तों के टूटने का

भ्रम ही क्यों

जब खानाबदोश जिंदगी जी रहे हैं।


चेहरे पर सहमी-सहमी सी लकीरें

अपने ही घर से 

बहुत दूर जिंदगी जी रहे हैं।

दुल्हन-सी सजी थी 

यह बस्ती कभी

अब उजाड़-सी जिंदगी जी रहे हैं।

तस्वीरें धुंधली-धुंधली

और काफिले गुजर रहे हैं,

पर यह अभिमान भी कैसा

हम टुकड़े-टुकड़े 

जिंदगी जी रहे हैं।


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