हम क्या करें
हम क्या करें
कोलाहल बहुत हो रहा है तो हम क्या करें
शहर में कुछ खो रहा है तो हम क्या करें।
ये उपवन उजड़ रहा है तो हम क्या करें।
जब माली को फिक्र नहीं तो हम क्या करें।
लोग मौकापरस्त हो रहें तो हम क्या करें
जुठ के आगे सच नाकाम है तो हम क्या करें।
वो आशियां जला के अपना हंसे तो हम क्या करें
ये उनकी अपनी आपबीती है तो हम क्या करें।
लोग चालबाजों को अपना कहे तो हम क्या करें
जिनकीं आंखों के आगे लगा पर्दा तो हम क्या करें
उन्हें नहीं गुमान अपनी औकात का तो हम क्या करें
जो जी रहे किसी भुलावे में तो हम क्या करें।