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Sachin Tiwari

Inspirational

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Sachin Tiwari

Inspirational

हलाहल

हलाहल

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ठोकरें खा खा कर ही सही 

मैंने खुद को संभलते देखा है,

गिर कर सौ सौ बार भी मैंने 

रक्त को फिर से उबलते देखा है।

वक़्त की चाल तेज़ थी और 

मुश्किलें भी कई थीं सामने

हर बार खुद को मैंने 

मुश्किल राह से निकलते देखा है 


गुजरते हुए वक़्त के साथ ही

मैंने वक़्त को बदलते देखा है,

सर्द रातों के बाद दोबारा मैंने 

सूरज को फिर से निकलते देखा है।

अंधेरे चाहे गहरे थे बेशक 

पर दिल में रौशनी थी कायम,

आखिरकार अंधेरों को भी मैंने

फिर से रोशनी में ढलते देखा है।


संकट से डरकर बेशक, 

मैं पीछे कभी हटा नहीं,

शिव की भक्ति से मैंने 

हर संकट को टलते देखा है।

महादेव के चरणों में

मेरा रोम रोम समर्पित है 

उन्हीं से हूँ प्रेरित जिन्हें मैंने 

हलाहल भी शौक से निगलते देखा है,



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