"हिसाब"
"हिसाब"
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मुझसे हर सवाल का जवाब मत मांगा करो,
मोहब्बत में आंसुओं का हिसाब मत मांगा करो,
कांटे ही काटें हैं दामन में मेरे,
मुझ बदनसीब से गुलाब मत मांगा करो,
डूबा हुआ हूँ अब तलक मैं तो तेरे इश्क़ में,
मुझे और डुबाने के लिये तालाब मत मांगा करो,
वैसे भी कई चेहरे थे तेरे छुपे हुए,
खुद को छुपाने के लिए अब नकाब मत मांगा करो,
भटकता रहा हूँ यूँ ही मैं तो उम्र भर,
बदलता रहता हूँ करवटें तन्हा रात भर,
जो सोयी नहीं हैं हफ्तों से कई,
इन आँखों से मेरी ख्वाब मत मांगा करो,
जलता रहा हूँ, मैं खुद ही "रवि" हूँ,
मुझे जलाने के लिये अब आग मत मांगा करो..!!!