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Shishpal Chiniya

Inspirational

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Shishpal Chiniya

Inspirational

हिफाजत-ऐ-मुल्क

हिफाजत-ऐ-मुल्क

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दुग्ध की तरह सफेद बर्फ में, यूं ही कदम अडे़ रहे।

मजबूर हुए न जाने कितनी दफा, पर यूं ही खडे़ रहे।

सुनकर हम शेरों की दहाड़ , गिदड़ बिलों में पडे़ रहे।

टस से मस न होने वाली आज़ाद हिन्द की फौज है ये।

जीत के बिना तो रणक्षेत्र सूना है , हार के चाहे जितने

खजंर गडे़ रहें।


सलाम उन बर्फ की वादीयों का, और बहती धारों का।

सलाम उन पहाड़ी घाटीयों का, और दिशाओं चारों का।

वाह! मोह्ब्बत-ऐ-वतन जवान, जो बाप है गद्दारों का।

इन शेरों के क्या रोकेगी बहते आतकं की ये धाराएं

ये काफिला बहता नीला सागर सा, न निशां किनारों का।

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जन्म लेंगे अपनों के लिये, ये तो खफा वतन के लिये

सफेद नहीं कफन तिरंगा चाहे मरते दफा तन के लिये।

जज्बात थोडे़ दबा दिये है, बस जज्बा वतन के लिये।

क्या पिलाया था दुग्ध में शेरनी ने उस वक्त जो 

डरता है जर हड्डीयों का, और बुढ़ापा इस तन के लिये।


रहें हिफाज़त मेरे देश की, इस जान की परवाह नहीं।

क्यों समझ रखा बस बागी हूँ मैं कोई लापरवाह नहीं।

उठती लहरे हैं जिगर में कोई पानी का ये प्रवाह नहीं।

मुझे चाहिये दुल्हन सिर्फ शहादत की और बदोंरी में

राष्ट्र की धुन, कोई तालियों से वाह ! वाह ! नही।



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