हिम्मत का चोला
हिम्मत का चोला
रात अंधेरी, निःशब्द खामोश,
अंधियारे का लेकर आगोश,
मन में पीड़ा, हताशा भरकर,
कुछ आतंकित करने आई थी ।
टूटे सपने, विफलता लेकर,
मायूसी फैलाने आयी थी ।
दुख के काँटो में उलझाकर
लहुलूहान बनाने आयी थी ।
पर अंतरात्मा विजय पाकर,
जब दीप आशा के जलाती है,
अंधकार की रात भगाकर,
कमल दल फूल खिलाती है ।
हिम्मत का चोला पहन पथिक,
स्वप्न साकार बनाया कर,
पद्चिन्हों पर चलने की आदत न डाल,
तू स्वयं पद्चिन्ह बनाया कर !
है अंधकार की रात मगर,
तू साहस से उठ जाया कर !
नित नई उषा की शबनम किरणों से,
ब्रम्हकमल खिलाया कर !