हे प्रभु! दया की भी बारिश कर दो,,
हे प्रभु! दया की भी बारिश कर दो,,
है कोई घर ऐसा जहां मेरे सिर पानी की टपकन से भीग़ ना पाए,
और मैं पूरी तरह से भीग भी जाऊं तो चलेगा।
लेकिन मेरी किताबें बच जाए।
कहते हैं यूं तो बरसात भी नहीं आती,
पहले धरती को कड़कती धूप में जलना पड़ता है।
स्वागत है इस बरसात की मेरी ओर से,
लेकिन हे राजाओं के राजा इंद्र देव तुम कभी-कभी इतने बेरहम क्यों हो जाते हो?
किताबें ही मेरे सच्चे दोस्त हैं, किताबें मेरी शान है,
जहां बसती मेरी जान है।
इसलिए हे प्रभु! दया की भी बारिश कर दो ।
मेरी किताबों को बचा लो,
मैं तो खुद को बचा भी लूंगी लेकिन मेरी किताबें तो चल कर कहीं जा भी नहीं सकती।
जब भी बारिश का मौसम आया है,
मुझे हमेशा यही डर सताया है।
तुमने हर बार मेरी किताबों को भीगाया है, और इस तरह से हर साल मैंने अपनी किताबों को गंवाया है।
हे देवों के राजा तुम्हारे राजकोष में तो सब कुछ है, कभी मौका मिले तुझे तो किसी दिन थोड़ी दया की भी बारिश कर देना।
कपड़ों की शॉपिंग के लिए तो नहीं एक- एक पैसे किताबों के लिए बचाया करती हूं,
नई-नई किताबें बड़े चाव से लाया करती हूं।
किताबें ही आया करती है मेरी हर ख्वाबों में,दुनिया देखा करती हूं मैं इन्हीं किताबों में।
फिर तुझे ईष्या क्यों है मेरी इन किताबों से?
यूं तो मूसलाधार बरसात मेरी आंखों से भी होती है, लेकिन वह तो किसी का नुकसान नहीं करती,
हां, कभी कभी तकिया भीग जाता है, आंखें सूज जाती है, नाक लाल हो जाता है, लेकिन यह पुनः वही अवस्था में आ जाते हैं।
मगर मेरी किताबें को तुम इस कदर भीगाते हो कि वह सूख कर भी मेरा नहीं हो पाते हैं।
इसीलिए हे देवों के राजा मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि किसी दिन ,किसी क्षण दया की भी बारिश कर देना।।