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Abhishek Kumar

Tragedy

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Abhishek Kumar

Tragedy

हे पंचतत्व

हे पंचतत्व

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हे पंचतत्व तुमने अभी जिया ही कहाँ है,

अमूल्य जीवन का रस पिया ही कहाँ है?

                

 नन्हे नन्हे शावकों के हज़ारों सवालों के हल का प्रयास,

 जीवन के उस लक्ष्य को पाने की आस,

 मात पिता के आंखों में बसे सपनो को पूरा करने का प्रयास,

 अभी तुमने किया ही कहाँ है?


हे पंचतत्व तुमने अभी जिया ही कहाँ है?

  

 बारिश की उस छोटी बूँद में बनते इंद्रधनुष को,

 सर्दी में ठिठुरते ,पाले के थपेड़े को सहते ,

 जीवन मृत्यु के उतार चढ़ाव को झेलते,

 ईश्वर के बनाये उन मूरतों को , 

 तुमने अभी देखा ही कहाँ है?


हे पंचतत्व तुमने अभी जिया ही कहाँ है?


उन सभी नन्ही जानो की मार्मिकता,

जिनकी आँखे तारे में अपनो को तालशती,

और न पूरा होने वाले सपनों में खोती,

उन बेबसों की हृदयवेदना,

को अभी तुमने जाना ही कहाँ है?


हे पंचतत्व तुमने अभी जिया ही कहाँ है?


झुग्गियों में रहने वाले ईश्वर के संतानो को,

कचरे से भोजन उठाने वालों को,

खून पसीने को एक न समझने वालों को,

बदक़िस्मती बेरोजगारी उत्पीड़न, जिनके जीवन का अभिन्न अंग,

उनके जीवन को ,तुमने अभी समझा ही कहाँ है।


हे पंचतत्व तुमने अभी जिया ही कहाँ है?


तमाम निराशाओं के बीच आशा की हल्की किरण को तालशती,

उन बेबस लाचारों के हृदय में अंकित क्षोभ , वेदना, उम्मीद 

और उन्ही में अपने जीवन का अर्थ ढूंढती,

उन बेबसों , के करुण क्रंदन को 

तुमने अभी सुना ही कहाँ है?


हे पंचतत्व तुमने अभी जिया ही कहाँ है,

अमूल्य जीवन का रस पिया ही कहाँ है?



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