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Abhishek Kumar

Others

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Abhishek Kumar

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सीधे दिल से.....

सीधे दिल से.....

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आंखें

बंद है उनकी

जैसे पलकों में बंधा कोई गूढ़ रिश्ता सा हो

पटल पे उभरता चेहरा मानो कोई फ़रिश्ता का हो


अंधेरे खामोश है उनकी,

जैसे निशा की चुप्पी से छिड़ा कोई द्वंद सा हो


जुल्फ़े बिखरी है उनकी ,

मानो घटाओं का मचा कोलाहल सा हो


थकती नहीं मेरी आंखें देख उन्हें

मानो बदन में जगी नयी स्फूर्ति सा हो


आज न जाने क्यों आँखों से नींद भी रुसवा कर गयी,

उनके मंज़िल के आने की खबर धड़कनों हवा दे गयी


काश ! ये कालचक्र रुक पाता,

उनके प्रतिबिम्ब को हृदय और देख पाता


प्रतीत होता है ये मेरा अच्छा नसीब है

क्योंकि वो आज मेरे इतने करीब है


न जाने क्यूँ मेरी लेखनी चलने लगी

मनोभावों को कागज़ पर उकेरने लगी


करीब रहकर भी वो मुझसे दूर है

ये समझने में देर क्यों लगने लगी


सुना था कही सपनों का कोई अस्तित्व नहीं

पर अब जाना सपनों बिना- कोई अस्तित्व नहीं


जागते हुए

देखा मैंने एक सपना

जैसे मन में जगा नया विश्वास सा हो

मन में जगा नया विश्वास सा हो.....


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