हे नारी तुम सब पर भारी
हे नारी तुम सब पर भारी
धर्म द्वशे पाखण्ड झूठ,
अत्याचार तुम क्षण संघारी,
समझ ना इनकूं सह सकारी,
हे नारी तुम सब पर भारी,
तुम अहिल्या तुम झलकारी,
तुम्ही वीर झांसी की रानी,
मान के खातिर यज्ञ में कूदीं,
तुम सती सब गुण अवतारी,
हे नारी तुम सब पर भारी,,,,,,,,,,
राम चले जब वन को,
तुम राम के सुख-दुख में बिसरानी,
समायीं धरिन तुम तनिक बात पे,
बन मूरत तुम यज्ञ करानी,
हे नारी तुम सब पर भारी,,,,,,,,,,,
तुम शूपर्णखा बनी जो ऐसी,
रावण बुद्धि तनिक न चाली,
रावण मन बात बीच तुम्हारी,
ज्वाला प्रतिशोध की भड़काली,
हे नारी तुम सब पर भारी,,,,,,,,,,,
तुम द्रोपदी पंच पण्ड की रानी,
महाभारत की तुम ठकुरानी,
कहे अपशब्द तुम कौरव तात को,
महाभारत में दीप जलानी,
हे नारी तुम सब पर भारी,,,,,,,,,,,,