माँ और मातृभूमि
माँ और मातृभूमि
इस कड़ाके की ठंड में,
माँ तेरी गोद की गरमाहट बहुत याद आती है।
लड़ाई के बाद ही सही,
फ़िर मिलूंगा तुझसे,
ये सोच ही मन को बड़ा लुभाती है।
इस मोड़ पे आकर,
दिल ये मेरा कुछ उदास है,
बिन तेरे माँ,
ना आयी ये जिन्दगी रास है।
चलो माना कि तू हर वक़्त मेरे दिल के पास है,
पर एक आख़िरी बार माँ,
तुझे देखने भर की आस है।
मुझे पता है माँ,
तू भी मुझे बहुत याद करती होगी,
याद कर के, पापा से छिपकर,
कभी-कभी रोती भी होगी।
पर माँ.. एक बात कहूँगा तुझसे,
जितना प्यार करती है तू मुझसे,
उतना ही प्यार करते हैं हम अपने वतन से,
जिसकी वर्षों से कर रहे हैं हम रक्षा बड़े जतन से।
बेटे से जुदाई का मत किया कर,
तू अफसोस माँ,
जीत कर ही तो तेरे पास,
आऊँगा ना एक रोज माँ।
जो गर आ ना सका तेरे पास,
तेरी गोद में माँ,
समझ लेना इस मातृभूमि ने समा लिया होगा,
मुझे अपनी गोद में माँ।
देश के लिए खुद को कुर्बान करने से,
बड़ी खुशी और क्या होगी,
इस तिरंगे से लिपट कर सोने से,
बड़ी खुशी और क्या होगी।
समझती ही होगी माँ,
तू इस देश प्रेम के अहसास को,
चिंता मत कर, तेरे पास आकर,
सच करूंगा मुझ पर तेरे अटूट विश्वास को।।
