वात्सल्य
वात्सल्य
पथ निहारते हुए आँखें थक गई उस माँ की,
जिसका लाल पहली बार स्वयं गया है पाठशाला को।
एक सी वेशभूषा में बच्चों का काफ़िला देख,
उत्सुकता बढ़ जाती है माँ की यह सोच कर कि
शायद इसी में मेरे लाल का आगमन है।
सहसा नज़र पड़ती है उस बालक पर जिसका चेहरा
सुर्ख है तेज धूप से, हुलिया दर्शाता है मानो कितनी
ही बार गिरा होगा रेत में बस्ते के बोझ से।
समीप आ के गोद में भरकर आँखें नम हो जाती है।
माँ की उन आँसुओं से जिनमे अतूट लाड, दुलार,
और वात्सल्य लबालब है।
