हाथों की लकीरे हौसलों के पंख
हाथों की लकीरे हौसलों के पंख
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हाथों की लकीरों को बस सजा के रखो,
ख्वाबों को सौंधी आग पर तपा के रखो।
तदबीर से तकदीर बना लो यारों,
हौसलों के पंख लगा के रखो।
चमन है मंजिल, यकीं है मुझे,
मेरे हाथों से तुम हाथ, मिला के रखो।
उचाई अता कर ऐ मददगार मौला,
जड़ें बेशक जमीं पे ग़हरी, जमा के रखो।
लौट आऊंगा शाम को, घरोंदे में तिरे,
बूढ़ी मां को तुम अपनी, बता के रखो।