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Avinash Natekar

Drama

3  

Avinash Natekar

Drama

दीपपर्व

दीपपर्व

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दीप जला हुआ,

उजियारा मन हुआ विभोर,

दीपपर्व है मना रहे,

इत उत सब चहु ओर !


इत उत सब चहु और,

सबन के मन का मिटे विकार,

दीप सिखाये “अवि” को,

कैसे होत निशा में भोर !


लक्ष्मी जी को सब,

कहे बैठो निज के ठौर,

पूजा पूरण कर दिनी,

बहुविधि कर के गौर !


कमला कहत मैं,

चंचला रहती श्रम के साथ,

विध्या ‘बुध्धि सत’ रहे,

निलय रहे उत और !


सब को बोनस चाहिए,

दीवाली के साथ,

शौपिंग सब हैं कर रहे,

खुल्लम खुल्ला हाथ !


खुल्लम खुल्ला हाथ के,

देखो खुजली मिट ना पाए,

गृहलक्ष्मी को मना रहे,

लक्ष्मी जी के नाथ !


मना दिवाली सब गए,

शयनकक्ष की ओर,

शरद ऋतू दिखा रही,

रह रह कर अब जोर !


रह रह कर जोर की,

जिनके ना घर है ना छत,

उन पर भारी बीतती,

रातें करती शोर !


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