दीपपर्व
दीपपर्व
दीप जला हुआ,
उजियारा मन हुआ विभोर,
दीपपर्व है मना रहे,
इत उत सब चहु ओर !
इत उत सब चहु और,
सबन के मन का मिटे विकार,
दीप सिखाये “अवि” को,
कैसे होत निशा में भोर !
लक्ष्मी जी को सब,
कहे बैठो निज के ठौर,
पूजा पूरण कर दिनी,
बहुविधि कर के गौर !
कमला कहत मैं,
चंचला रहती श्रम के साथ,
विध्या ‘बुध्धि सत’ रहे,
निलय रहे उत और !
सब को बोनस चाहिए,
दीवाली के साथ,
शौपिंग सब हैं कर रहे,
खुल्लम खुल्ला हाथ !
खुल्लम खुल्ला हाथ के,
देखो खुजली मिट ना पाए,
गृहलक्ष्मी को मना रहे,
लक्ष्मी जी के नाथ !
मना दिवाली सब गए,
शयनकक्ष की ओर,
शरद ऋतू दिखा रही,
रह रह कर अब जोर !
रह रह कर जोर की,
जिनके ना घर है ना छत,
उन पर भारी बीतती,
रातें करती शोर !
