Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Bhaskar sharma

Tragedy

2  

Bhaskar sharma

Tragedy

हे मानसून

हे मानसून

1 min
315


इस बार भी बाढ़ ने किया परेशान 

घर घर बना श्मशान

तुम क्यो बन रहे हो हैवान 

हे मानसून अब तुम्हारा स्वागत

करने लायक नही हैं हम इंसान ।।


नदियों की ज़मीन पे खड़े किए मकान 

पेड़ो को काट जंगल किए वीरान 

हे मानसून अब तुम्हारा स्वागत

करने लायक नही हैं हम इंसान ।।


मैं हूँ बहुत हैरान परेशान

हमारा सिस्टम नहीं देता ध्यान 

तालाब बन गए हैं मैदान 

हर बार बाढ़ बन जाती है हैवान 

हे मानसून अब तुम्हारा स्वागत

करने लायक नहीं है हम इंसान ।। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy