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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy

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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy

हे कृष्णा ...!

हे कृष्णा ...!

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हे कृष्णा ! यहां इस कलयुग में 

अब दुबारा मत आना,

स्वार्थी और कपटी लोगों पर

यूं ही गीता ज्ञान मत बहाना।


अब यहाँ ना कोई अर्जुन है

बात तुम्हारी जो मान ले,

सफेदपोश बने घूमते हैं भेड़िए

दुरबुद्धि का ज्ञान लिए।।


कहने को सनातनी हैं पर 

सामर्थ्य किसी पर है नहीं,

आधुनिकता की दौड़ में ये

गीता और वेद पढ़ते नहीं।


गंगा जमुनी तहजीब के चक्कर में

भाईचारा जो ये निभा रहे,

बहन बेटियों की इज्जत आबरू

खुद अपने हाथों लुटा रहे।।


इतिहास से न कोई सबक लिया

पूर्वजों का जिन्हें अपने भान नहीं,

नपुंसक बनकर घूमते हैं यहां

भगवा पर इन्हें अभिमान नहीं।


जिहादी, बलातकारियों के ये 

खूब कशीदे पढ़ते हैं,

राणा, शिवा का बलिदान भूलकर

कामी अकबर को महान ये कहते हैं।।


सनातन संस्कृति को बदनाम करते

देवी देवताओं को गाली देते हैं, 

मंदिर की राह भूल गए अब 

मजारों पर सर अपने फोड़ते हैं।


चंद पैसों में बिक जाते ये

जातियों में बंट लड़ मरते हैं, 

सामर्थ्य शक्ति को भूल अपनी

जयचन्द बने घूमते हैं।।


विदेशी धरम के पीछे भागे 

उसी की नकल ये करते हैं 

छद्म सेक्युलर, वामपंथी बनकर

अपने देश से गद्दारी करते हैं।


फ्री की बिजली फ्री का पानी 

अवैध घुसपैठ पर चुप्पी साधे रहते हैं 

उनकी घुड़कियों पर फिर मारे मारे 

ये इधर उधर डर कर फिरते रहते हैं।।


हे कृष्णा..! यहां इस कलयुग में

अब दुबारा तुम मत आना,

धर्म की खातिर अब यहां

यूं ही गीता ज्ञान मत बहाना।।।


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