हे! अमरपुत्र
हे! अमरपुत्र
हे!ईश्वर के अमरपुत्र तुम ,प्रभु का हर क्षण में विचार करो,
विविध रूप में मिलेंगे तुमको,हर रूप में तुम सत्कार करो।
सर्वप्रथम मात-पिता के रूप में, तुम्हारी नींव का प्रभु ने सृजन किया,
उनकी पूर्व पीढ़ियों के गुणों का,तभी हरि इच्छा से था तव वरण हुआ ।
गर्भकाल में किन रूपों में प्रभु मिले थे,तब पुण्य धरा पर अवतरण हुआ,
सार्थक कृति तृण तक भी प्रभु की,निज सार्थकता हर पल स्मरण करो।
हे! ईश्वर के अमरपुत्र तुम ,प्रभु का हर क्षण में विचार करो,
विविध रूप में मिलेंगे तुमको,हर रूप में तुम सत्कार करो।
वसुधा पर आते ही प्रभु ने किन-किन रूपों में तुमको दिया सहारा,
बाल स्वरूप रहा अति सुखमय, रहा था तब प्रभु संग सानिध्य तुम्हारा।
मोह -भंवर में फंसे त्याग प्रभु,रहा उलझाता तुमको झूठा ही दर्प तुम्हारा,
भौतिकता के मोह में पड़कर किए क्यों तूने, अगणित-गुनाह विचार करो।
हे! ईश्वर के अमरपुत्र तुम, प्रभु का हर क्षण में विचार करो,
विविध रूप में मिलेंगे तुमको, हर रूप में तुम सत्कार करो।
शिशु सम सरल प्रवृत्ति ही तुम्हारी,उस परमपिता को प्यारी है,
आर्यावर्त के पावन ग्रंथों की ये सत्यता,वर्ड्सवर्थ ने भी स्वीकारी है।
रिश्ते के प्रति अनासक्त तू, भौतिक सुखों में आसक्ति तुम्हारी है
आप प्रभु के राजहंस हैं, अपने नीर -क्षीर विवेक का न तिरस्कार करो।
हे! ईश्वर के अमरपुत्र तुम,प्रभु का हर क्षण में विचार करो,
विविध रूप में मिलेंगे तुमको, हर रूप में तुम सत्कार करो।
ये प्रकृति तो प्रभु का सृजन है, संतुलन खुद प्रकृति से होना है,
प्रलोभन वश असंतुलन किया खुद ही,तो शीश पकड़ क्यों रोना है?
सार्स-एच.आई.वी.-भू तापन अब,नाश हित नव संक्रमण" कोरोना" है,
संतुलन शक्ति प्रभु की कुदरत में, माल्थस सिद्धांत को ध्यान धरो।
हे! ईश्वर के अमरपुत्र तुम प्रभु का हर क्षण में विचार करो,
विविध रूप में मिलेंगे तुमको, हर रूप में तुम सत्कार करो।
मुगालते सब त्याग सत्य स्वीकारो,हम सब विश्व बंधुत्व को ध्यान करें,
अखिल विश्व परिवार एक है, सर्वहित हो जिनसे ऐसे सतत् प्रयास करें।
सद्बुद्धि प्रभु का वर हम सबको,दिव्य वचनों का पालन सुविचार करें,
शान्ति दूतों की वाणी पहचानो, ज्ञानियों सुकर्म कर सद्व्यवहार करो।
हे! ईश्वर के अमरपुत्र तुम,प्रभु का हर क्षण में विचार करो,
विविध रूप में मिलेंगे तुमको, हर रूप में तुम सत्कार करो।