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Dayasagar Dharua

Abstract

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Dayasagar Dharua

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हाँ आज ही

हाँ आज ही

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हाँ !

आज

निखर गया

नाकाबिलीयत

और उसी ढंग से

थोडा और बिखर गया

काबिलीयत

अंत में

नाकाबिलीयत ने

काबिलीयत पर

फ़तेह कर ही लिया


हाँ !

आज ही

मोम का जो

आधा हिस्सा पिघला था

किसी निष्ठुर के ताप से

पुरी तरह पिघल कर

जमीन को चाटने लगा

अंत में

वहीं जम गया

बिलकुल किसी विस्थापित-

आदिवासी संप्रदाय सा


शायद

आज ही के जैसा

कोइ दिन होगा

जब निज स्वार्थ के लिए

धर्म के अवतार युधिष्ठिर के बोल पर

कटे होंगे गुरु द्रोण,

काल के निष्पक्ष प्रहार से

टुटे पडे होंगे

कुरुक्षेत्र के रण मे लाखों सर,

समन्दर मे समा गया होगा

गान्धारी के श्राप से द्वारका पुरी,

समय की वक्ष मे दब गया होगा

पाण्डवों का इन्द्रप्रस्थ

और लीलामय वासुदेव ने छल से

पलट दिया होगा पन्ना कलियुग का


हाँ ! क्योंकि

अंत में आज ही

आजन्म लडता आ रहा

एक योद्धा की जंग की

परिसमाप्ती का घोषणा

उसके

आत्मबल के टुटते ही,

मनोबल के धराशायी होते ही

कर दिया गया

उसने कुछ सपनें देखे थे

जो उसे छोड़ देना पड़ा

नये कदम के साथ

उसने तलवार छोड़

कलम उठाया

हाँ आज ही।


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