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Leena Kheria

Abstract

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Leena Kheria

Abstract

हाले दिल...

हाले दिल...

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शफ्फाक

कोरे कागज़ के दिल पर

मैं अपने दिल का 

हाल लिख रहीं हूँ


अनकहे

अनसुलझे जो रहे हमेशा

उलझे उलझे से वो सौ

सवाल लिख रहीं हूँ


जज़्बात

जो दबे थे कब से सीने में

बहके बहके से वो सारे

ख्याल लिख रहीं हूँ


पाती

मेरी ये कोई पहँचा दे जिंदगी तक

 इसमें मैं वो हर शिकवा हर 

मलाल लिख रही हूँ 


इत्मीनान

हॉं कुछ सुकून तो है आजकल

लोग कहते है कि मैं

कमाल लिख रही हूँ।


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