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Varun Singh Gautam

Abstract

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Varun Singh Gautam

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गूँज उठी भुवन में

गूँज उठी भुवन में

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गूंज उठी भुवन में, ज्योति जली सकल अविनाशी

सुर सुर सुरेश्वरी, दसो दिशाओ में तेरी जय जयकार

बाधा विध्न को हरण कर , संताप हरे वैष्णवी करूणेश्वरी

रास जीवन हंस विहारनी श्वेतकमल कली सृजनहार

जय जय जय श्री नारायणी हंसवाहिनी सर्वेश्वरी


दिव्य स्वरूपी सुरवन्दिता बिखरे पंचभूत कण – कण में

रचे कला स्वर – लय – ताल गति छायी इन्द्रधनुष के

मैं अम्बलम्ब भू दिव दव जौन अब्धि शून्य शिखर में

रम रम रमा वृजभूमि साँजे, मुरली बाजे उपवन मालिनी

जय जय जय दिव्यालंकारभूषिता सुवासिनी चण्डिका


मणिजड़ित महामाया मंगल भवन करें सुमिरन विधाता

इन्द्रिय खिले यह मंजर पथ खेवैया केवट ब्राह्मी त्रिगुणा

नित नित पूज्य वन्दन पुष्प अर्पित करें चन्द्रवदनि निरंजनायै नमः

श्रुति नयन अश्रु से सत्य छवि फलीभूत अभिनय अपरम्पार

जय जय जय श्रीपदा कान्ता विमला विन्धावासायै नमः


ध्वनि अमृत मधुमय में मीरा स्वर झरनों के नीर गंगा

यह वेग रोम रोम करे हित चंचल मन जगे ऋद्धि सिद्धि परमयोग

शुक्तिज धारी महाकाल्यै संजीवनी कलानिधि सर्वदेवस्तुता

वेद – वेदान्त गुरु ग्रंथ उपनिषद् त्रिपिटक करें उच उच्चार

जय जय जय सदुगुण वैभवशालिनी त्रिभुवन करें हुँकार।


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