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Mithilesh Tiwari

Abstract

4.7  

Mithilesh Tiwari

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गुरु वंदना

गुरु वंदना

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गुरू है वो दिव्य प्रकाश करती संतति जहाँ विकास।

प्रदीप्त प्रभाकर ज्यों आकाश करता रजनी तिमिर विनाश।।


स्वयं दीप बनकर नित जलते अखिल अग्यान तमस को हरते।

परहित में सुख चैन गँवाते अर्जित ग्यान सहर्ष लुटाते।।


व्यक्तित्व धरा सम गुरुता भारी  नीति निपुण सित शिष्टाचारी।

अनुशासन प्रिय परिवर्तन कारी ' अवबोधक 'अनुपम तम हारी।।


संकल्पपूर्ति के ये संवाहक साहस समता धैर्य के वाहक।

व्यापित दुविधा क्लेश के नाशक हैं यश-कीर्ति सुसंस्कृति प्रवाहक।।


कृपा-दृष्ति जिस पर हो जाए हेतु उसे जीवन का मिल जाए।

अभिलाषा मेरी भी पूरी हो जाए यदि गुरुचरणों में ये वंदना पहुँच जाए।।


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