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Simmi Bhatt

Inspirational

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Simmi Bhatt

Inspirational

गुफ्तगू

गुफ्तगू

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रात अंधेरी नींद गहरी थी

सपनों की दुनिया में मैं तैर रही थी।

अजीब आवाजों के शोर से मैं वापिस आयी

तो पाया मैं तो अपने घर के बिस्तर पर ही सो रही थी।


 घर पर गहरे अंधेरे का पहरा था 

पर मेरे आंगन ने शोर का पहना सहरा था।

सहमी इक कोने में बैठी मैं माथे पे रखे हाथ

मेरे घर का दरवाज़ा कर रहा था घर की चौखट से बात।

दरवाज़ा - बहन,मेरी आंखो से आंसू बरस रहे हैं


कदमों की आहट सुनने को

मेरे कान कब से तरस रहे हैं।

चौखट–भैया, हमने तुमने तो देखी हैं

इस घर की कितनी पीढ़ियां

कोई आता था कोई जाता था 


हर कोई मेरी कलाई पर लगी घंटी बजाता था।

दरवाज़ा- वो ही तुम हो वो ही मैं हूं वो ही घंटी है

और हैं वही सीढ़ियां, पर घर के लोगों के पैरों में 

पड़ी हैं ना जाने कैसी हैं बेड़ियां।

रसोई की तरफ़ देखा तो चूल्हा और टिफिन

बतिया रहे थे।


यह घर के लोग आजकल लंच क्यों नहीं लेजा रहे थे ?

बैठक में देखा तो इक उदासी सी थी छाई,

पेंटिंग और गुलदान बोले हमें देखने कोई भी आता नहीं भाई।

ध्यान से सुना तो धीरे से कोई कराह रहा था,

अरे यह शोर तो बेडरूम से आ रहा था।


जैसे ही अंदर गई तो टीवी मेरा हाथ पकड़ के रोने लगा

ज़्यादा नहीं जी पाऊंगा मैं,

अब मुझे हर समय तेज़ बुखार है चढ़ने लगा।

पलंग बोला लगता है मुझे अस्थमा की लग गई बीमारी है

अब तो मुझे सांस भी रुक रुक के आ रही है 


यूं महसूस होता है मेरे सीने पे पत्थर पड़े कई भारी है।

उदास सी मैं खड़ी सबकी शिकायत सुन रही थी

और इक वह ही थी जो मुझे चुपचाप देख रही थी

ना कोई गिला था ना कोई शिकवा था 


बस चेहरे पे उसके इक हंसी गहरी थी।

वो घड़ी थी वो वक़्त था जो चलता जा रहा था।

है वक़्त किसी बुरे वक़्त में फंसा

इसलिए हमें ऐसा वक़्त दिखता है

जीवन भर भूल ना पाएं ,ऐसी इक सीख सीखता है।


वक़्त बदलता है पर वक़्त से,

नहीं रहता है एक सा वक़्त हर वक़्त

कभी पतझड़ तो कभी बसंत आता है 

कर लो इस वक़्त से दोस्ती 


धीरता से वीरता से

इस वक़्त की गंभीरता से

पल में यह पल बदल जाएगा

वक़्त की क्या औकात जो हमें

हराएगा।


घड़ी की बात सुनके सभी मुस्कराए

चलो धैर्य से इस वक़्त को बिताएं।


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