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Simmi Bhatt

Romance

4  

Simmi Bhatt

Romance

आईना

आईना

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बहुत देर बाद आज फ़ुर्सत के पल थे

सोचा चलो ख़ुद को सवाँर लूँ

मैं आइने के सामने ख़ुद को निहार लूँ

सिमटीं सहमी जब मैं आइने के सामने

खड़ी होई तो आइने ने मुँह फेर लिया


मुझे पहचाने से इंकार कर दिया

मैंने बौखला कर कहा,”अरे यह मैं ही तो हूँ

तेरे बचपन की दोस्त तूने

ऐसे कैसे मेरे अस्तित्व को नकार दिया”?


मैंने बहुत गुहार लगायी परंतु

उसके माथे पे एक शिकन तक ना आयी

“सुन “मैंने उसे याद दिलाने की कोशिश की

वो तू ही तो था जिसके सामने मैं माँ की सारी पहनके

जल्द ही बड़े होने के सपने देखती थी


तेरे ही साथ मैंने अपनी जवानी के सपने बुने थे

वो दिल की कहानियाँ मैंने तुझे ही तो सुनायीं थी

वो सुर्ख़ जोड़ा पहनके मैं सबसे पहले तेरे ही सामने आयी थी

अब आइना बोला अरे मैं भी तो तेरे साथ ही जिया हूँ

तेरे एक एक लम्हे को ख़ुद में सिया हूँ


मुझे ग़म नहीं कि गालों पे लाली नहीं

दुख है कि तू हँसने की अदा भूल गई

तेरी आवाज़ की खनक कहाँ धूल होई

तू तो धूप को हाथों से पकड़ती थी

तितलियों को अपने पंखों पे ले उड़ती थी


आज यह कोई और है

“हाँ”मैं बोली “मैं तो अपना घरौन्दा सजाती रही

और वक़्त चेहरे पर निशाँ छोड़ता गया

मैं बोली तो चल कुछ सोचते है

हम दो नो मिलके मुझे खोजते हैं


जल्द ही एक अंश मिला मेरा

वो तेरे झूठे वादे के तकिये के नीचे पड़ा था

तभी अलमारी की सरसराहत में मैंने कुछ पाया

एक और हिस्सा छोटे छोटे मोज़े और दास्तानों की

घाँठो में फँसा नज़र आया


हिस्से जोड़े तो कुछ कम पाया तभी याद आया

कहीं कुछ सुना था वो एक टुकड़ा तो मेरे

दफ़्तर की फ़ाइल में दबा कबसे कराह रहा था

सबको संभाल के फिर मैंने माला में पिरोया


उससे पहन के मैंने आइने को देखा तो आइना

खिलखिलाया हमने एक दूजेको गले लगाया

और बोला चल चलें अपने घर ऐ मेरे हमसफ़ार

वो आइना नहीं मेरी रूह थी जो आज मुझसे

रूबरू थी।


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