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Simmi Bhatt

Abstract

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Simmi Bhatt

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बदलते अहसास

बदलते अहसास

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 वो उम्र की कुछ लकीरें हैं 

चेहरे पे 

वो कुछ तजुर्बे की निशानियां हैं

वो हालातों के रंग हैं

वो बदलते रिश्तों की कहानियां

हैं

वो मौसम जो तेरे आने पे खिलता था

वो अब सर्द सा क्यों लगता है

गुलिस्तान है मेरे इर्द गिर्द 

पर पैरों के नीचे पतझड़ के पत्तों

की चरमारहट सी क्यों सुनती है

वो बर्फ से जज़्बात हैं दीए की गर्मी से

पिघलेंगे नहीं 

ख़ुद को जलाके ख़ाक करना होगा

 जज़्बात जगाने के लिए

वो मेरे जलने के बाद भी मेरी ख़ाक

ठंडी सी रह गई 

तपिश इसकी सब खत्म हो गई थी

वो जज्बात की बर्फ पिघलाने के लिए।

ना जाने कितनी आवाज़ें हैं मेरे अन्दर

तन्हाई में गूंज गूंज कर चीखती हैं 

इनको सुनना है मुझे पर 

अब मुझको सोना होगा 

उनको जगाने के लिए।

वो गीली सी धूप है धुंदले से साए हैं,

हां चश्मा भी लगा लेती हूं मैं अपना

पर अहसास बदलते ही नज़र आए हैं।



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