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Varsha Zambare

Romance

3  

Varsha Zambare

Romance

गुन्हगार

गुन्हगार

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हां मै गुन्हगार हूंं तुम्हारी

तुमसे प्रीत जो लगायी ।।

तुम्हारे इश्क ने इतना असर

डाला मुझपर की

मै तुलसी तेरे आंगन की बन गयी ।।


हां मै गुनहगार हूंं तुम्हारी

तुम्हारे मोहब्बत में 

शमा से जल गयी 

ना धुआं उठा ,ना राख हुयी

बस ऐसें ही खाक हुयी

फ़िर भी मै लडी सावन की बन गयी ।।


हां मै गुनहगार हूंं तुम्हारी

तुम्हारे मोहब्बत में 

नदी की धारा की तरहा बह गयी

अरमानों को पल्लू में 

बांधकर हर मुश्किलों को सह गयी 

फ़िर भी मै लहर पवन की बन गयी ।।


हां मै गुनहगार हूंं तुम्हारी

मै ही बनी मीरा , मै ही राधा

प्रेम का अमृत नसीब में कहां

बिरह का विष ही पी लिया ज्यादा

फ़िर भी मै सांस धडकन की बन गयी ।।



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