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Varsha Zambare

Romance

4  

Varsha Zambare

Romance

प्रेम की डोर

प्रेम की डोर

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ये पर्बत और ये हंसी वादीयों

के गीत गाती है ये नदीयां

गुंज उठती है ये दरीयां

पंछियो के शोर से।।


मुझे बांध लेती है

उनकी निगाहे प्रेम की डोर से।।

नाच उठता है

मन का मयूरा 

मुझे घेर लेती है

जब उनकी बांहे।


दिन रात कोइ

देखता है राहें।

कहां छिपाऊ

अपने दिल को चितचोर से।।

मुझे बांध लेती है

उनकी निगाहे प्रेम की डोर से।।


ये सावन के झुले

मन में क्यों झुले।

साजन के आने से

हृदय के द्वार कैंसे खुले।

कोइ दस्तक दे रहा है उस ओर से।।


मुझे बांध लेती है

उनकी निगाहे प्रेम की डोर से।।

दर्पन में देखूं तो

नजर आती है

मुझे क्यों दुल्हनीयां।

शोर मचाने लगी कैंसी

ये छमछमा के पायलियां।


बगैर इजाजत के

पांव कहां चल पडे

कोई खिंच रहा है मुझे जोर से।।

मुझे बांध लेती है

उनकी निगाहे प्रेम की डोर से।।


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