गुमनामी का चादर
गुमनामी का चादर


रहने दो गुमनाम मुझे
मर जाने दो यूं ही मुझे
वैसे भी मरना तो है ही
कौन जाने वो पल आ जाए कभी
गुमनामी का चादर ओढ़े देखो मैं चलता हूं
गुमनामी के सागर में रोज डुबकी लगाता हूं
क्या कहने इस गुमनामी के
इसमें लाखों करोड़ों आए गये
कोई न पछताया और कोई न रोया
सब ने सब कुछ किया और
दुनिया को अलविदा कह दिया
हिटलर, सिकंदर, पीर, पैगंबर
आए गये ,अब तुम आए हो
कल जाओगे,सूरज नहीं हो
जो ढल कर फिर उग जाओगे।