गुज़र रहे लोग
गुज़र रहे लोग
गुज़र रहे लोग कई दौर से
कई दर्द दिखे जब देखा गौर से
सब झुझ रहे अपनी - अपनी मुश्किलों से
तन्हा नहीं पर फिर भी कौन लड़े अकेलों से !
चार दिन चांदनी सी लोग गुजरते हैं करीब से
पर कोई नहीं पूछता हाल - ए - दिल इस गरीब से
भले सौ लोग साथ ना हो पर साथ दिखे जो थाम लेना उन्हें प्यार से
ज़रूरी नहीं सब मिले पर जो जितना मिले स्वीकार लेना जहां से
क्या पता कब कौन कैसे अलविदा हो अपनी ज़िन्दगी से
तो क्यों रूठना बेवजह सी बातों और बंदगी से
माना गम भूल के आसान नहीं हंसना चेहरे से
पर क्या मुश्किल है इतना खुश रहना दिल से
खुले किताब से इस आसमां को भर दो अपने रंगों से
फिर देखना खुश रहना आसान लगेगा तन मन से।
